shweta soni

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पुनर्विवाह - प्यार कि नई कहानी ( सीजन दूसरा ) 5

स्वाति के बारे सोचते हुए रविश के चेहरे पर कब एक मुस्कान आ गई , उसे पता ही नहीं चला । रविश का छोटा भाई विवेक उसे अकेले में मुस्कुराता देख  रविश से मजाक करने लगा । 

विवेक - क्या बात है भैया ! आप अकेले बैठकर मुस्कुरा रहे हैं । कुछ याद आ गया क्या ? 
रविश - नहीं ..ऐसी कोई बात नहीं जिसे याद करके मैं मुस्कुराने लगूं । मैं फ्रेश होकर आता हूं ...तब तक तुम भी तैयार हो जाओ । कहकर रविश बाथरूम में घुस गया । 
विवेक अपने आप से - आप कुछ भी कहो भैया , लेकिन यहां आने से आपके चेहरे पर एक रौनक देखी आपको पहली बार मुस्कुराते हुए देखा ।‌ वरना आपको शांत और गंभीर देखने की आदत पड़ गई है । लगता है जैसे आप हंसना ही भूल गए हैं । रविश बाथरूम से बाहर निकल कर तैयार होने लगता है । 
विवेक - भैया , आप तैयार हैं , तो बाहर चलें । मुझे बहुत भूख लग रही हैं । 
रविश - हम्म , चलो । 
रविश और विवेक बड़े से हाल में पहुंचे , जहां दोनों पक्षों के मेहमान खाना खाने और आपस में  बातें करने में मशगूल थे । वहीं कुछ लड़कियां अपना - अपना  ग्रुप बनाकर बैठी हुई थी । बातें करते और कनखियों से इधर उधर देख जबरन मुस्कुराने लगती थी । तभी रविश और विवेक फूड काउंटर की तरफ बढ़े । रविश ने आज फार्मल कपड़े पहने थे । नेवी ब्लू शर्ट और ग्रे कलर की पेंट , अपने फार्मल लूक में ही रविश बहुत ही आकर्षक दिख रहा था । जिसकी वजह से वहां पर बैठी लड़कियों नजर रविश पर ठहर गई थी । विवेक अपने आसपास देखते हुए  - भैया ..आप थोड़ा बचकर रहना मुझे यहां के हालात कुछ ठीक नहीं लग रहे । 
रविश , विवेक की ओर देखते हुए - क्या हो गया यहां के हालात को ! 
विवेक - जरा अपने आसपास तो देखिए । 
रविश ने अपने आसपास देखा और अपनी खाने की प्लेट लिए एक ओर बढ़ गया । 
उसी समय स्वाति भी अपने बच्चों को खाना खिलाने के बाद खुद अपनी प्लेट लगाने लगी । खाना लेकर वो पलटने ही वाली थी कि , किसी से टकराते - टकराते बची ।  अरे ...दिखता नहीं क्या आपको ...उस शख्स ने सामने देखते हुए कहा ! ये रविश ही था जिससे स्वाति टकराने वाली थी । स्वाति ने रविश की ओर देखते हुए कहा - आप जरा देखकर नहीं चल सकते । मुझे क्या पता कि आप मेरे पीछे खड़े  हैं । अभी मेरे कपड़े खराब हो जाते । 
रविश घूरकर स्वाति को देखते हुए - आपको अपनी पड़ी है , कभी दूसरों के बारे में भी सोच लिया कीजिए । 
स्वाति - क्या मतलब ! 
रविश - मतलब ये कि , मैंने कोई पत्ते नहीं लपेटे है । मेरे भी कपड़े खराब हो जाते । आपकी लापरवाही से ! जरा देख कर चला कीजिए । 
स्वाति चिढ़कर  - यही बात मैं आपसे सुबह कहती तो ! आपकी लापरवाही की वजह से मैं गिर जाती उसका क्या ! 
रविश ठंडे लहजे में - लेकिन गिरी तो नहीं ! 
कहकर रविश वहां चला गया और एक ओर बैठकर आराम से खाना खाने लगा । 
स्वाति भी गुस्से में एक ओर जाकर बैठ गयी और खाने लगी । स्वाति खाना खाने में मस्त थी । स्वाति हल्के गुलाबी रंग की अनारकली सूट पहने हुए थी । जिसपर अपने थोड़े से  बालों को क्ल्चर में फंसा कर बाकि के बालों को खुला छोड़ दिया था । माथे पर छोटी काली बिंदी , बहुत ही हल्का फुल्का मेकअप किया था । जिसकी वजह से वो और भी सुंदर दिख रही थी । ना चाहते हुए भी बरबस ही रविश की नजर स्वाति को देख लेती । लेकिन स्वाति खाने में व्यस्त थी ना किसी से बात कर रही थी ना किसी को देख रही थी । उसका पूरा ध्यान खाने पर था । 
रविश  - लगता है आज सुनामी आने वाली है , जिस तरह से यें खा रहीं हैं । लगता है कि पिछले कुछ दिनों से खाना ही ना खाया हो । रविश सोचकर मुस्कुराने लगता है । उधर स्वाति खाना खा कर रवि की के पास जाकर बैठ जाती है । जहां रवि अपनी होने वाली दुल्हन सपना और कुछ रिश्तेदारों के साथ बैठा हुआ था । 
रवि , स्वाति का परिचय करवाते हुए - यें मेरी बड़ी बहन हैं । स्वाति दीदी ! और स्वाति दी ये सपना है ।
स्वाति - मैं तो देखते ही पहचान गयी थी । बहुत सुंदर हो सपना ! 
सपना - दी , पर आपकी तरह नहीं ! आप मुझसे ज्यादा सुंदर हैं । तभी , सपना कुर्सी से उठते हुए - रविश और विवेक को सबके पास लेकर आती है । 
सपना - भैया और भाई आप भी हमारे साथ बैठो ना ! रविश , सपना को ना नहीं कह पाया क्योंकि रविश अपनी बहन से बहुत प्यार करता है जिसकी वजह से सबके साथ बैठ गया । 
सपना , स्वाति की ओर देखते हुए - भैया , यें स्वाति दी है ‌ । रवि की बड़ी बहन , आप तो मिल ही चुके हैं । आज सुबह ही ! 
रविश मन में - अच्छा तो इनका नाम स्वाति है । 
स्वाति दी - यें मेरे भैया है रविश शर्मा और ये मुझसे छोटा विवेक है । 
सपना ने विवेक की ओर इशारा करके बताया । 
स्वाति - नमस्ते रविश जी !  
रविश - आप आज के जमाने में हाय - हैलो को छोड़कर नमस्ते करती है । 
स्वाति - हां क्यूं ! नमस्ते कहने में क्या बुराई है ? और ये आज का जमाना क्या होता है । 
जमाना कितना भी क्यूं ना बदल जाय , हमें अपनी संस्कृति नहीं भूलनी चाहिए । आखिर जमाना भी तो हमसे ही चलता है ! है ना ! 
रविश ‌, स्वाति की ओर देखते हुए - आपकी बातें सुनकर लगता है कि आप अभी भी पुराने जमाने में ही जी रही हैं या आप फिर दिखावा करतीं हैं । दूसरों को इम्प्रेंस करने के लिए ! 
स्वाति अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और अपनी ऊंगली रविश की ओर करके  - मैं ऐसे ही हूं । मुझे किसी को इम्प्रेंस करने में कोई दिलचस्पी नहीं है । मैं उन लोगों में से बिल्कुल नहीं हूं कि दूसरों की नजर में आने के लिए अपने आप में दिखावा करतीं हैं । समझें आप ! 
स्वाति जाने लगती हैं , लेकिन रविश , स्वाति के सामने आकर - मुझसे ऐसी बात करने की आपकी हिम्मत कैसे हुई । मैंने बहुतों को देखा है ऐसे ही मीठी-मीठी बातें कर के सामने वाले को फंसाते है और उसका फायदा उठाते हैं ।  स्वाति गुस्से में - मिले होंगे किसी से भी , लेकिन मुझसे आप पहली बार मिले है । मुझे दुसरों जैसा समझने की कोशिश मत करिएगा । मैं उन लोगों में से नहीं हूं कि आप जैसे लोगों के आगे - पीछे घूमूं समझें आप ! कहकर स्वाति वहां से चली गई । 
रविश गुस्से से स्वाति को घुरते हुए वहां से चला गया । सपना , रवि और विवेक कभी स्वाति को देखते तो कभी रविश को । आखिर में विवेक , स्वाति के पीछे भागा । 
उधर स्वाति गुस्से से हाल से निकलकर बाहर गार्डन की ओर निकल गई । स्वाति - समझता क्या है वो अपने आप को अगली बार अगर वो मेरे सामने आया ना तो मैं उसके दांत तोड़ दूंगी । उद्बबिलाव कहीं का ! 
" उद्बबिलाव " ये कुछ ज्यादा नहीं बोल रही हैं आप ' विवेक ने कहा ! 
स्वाति गुस्से से विवेक को देखते हुए - अब आप अपने भाई की तरफदारी मत कीजिए । पहले उन्हें लड़की से बात करने की तमीज सीखाइये । 
विवेक - देखिए आप पहले अपना गुस्सा थूक दीजिए । आप भैया को नहीं जानती । इसलिए ऐसे बोल रही हैं , लेकिन जिस दिन आप भैया को जान जायेंगी उनके बारे में अपनी राय बदल देंगी और उनसे दोस्ती कर लेंगी । 
स्वाति - वो तो इस जन्म में होने से रहा फिर । कहकर स्वाति वहां से चली जाती हैं । 
विवेक - लेकिन मुझे क्यूं लग है कि , आप और भाई ...कहकर विवेक चुप हो गया । 

क्रमशः

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4 Comments

इंट्रेस्टिंग। लेकिन पहले पार्ट की स्वाति मे और इस स्वाति मे डिफरेंट है।

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Rohan Nanda

20-Apr-2022 12:36 PM

बहुत खूब!

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shweta soni

20-Apr-2022 01:44 PM

Thank u 😊

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